Sunday, 12 March 2017

आज होलिका दहन है और मैं कई चीज़ें जलाकर भस्म कर देना चाहता हूँ.

आज होलिका दहन है और मैं कई चीज़ें जलाकर भस्म कर देना चाहता हूँ. और चाहता हूँ की उस आग की लपटें दूर तक दिखाई दें. अज्ञात लोगों को भी. नष्ट करने के और भी तरीके होते हैं पर मुझे जलाकर भस्म कर देने की प्रक्रिया का प्रभाव दूरगामी और अर्थपूर्ण लगता है. जला देना चाहता हूँ क्यूंकि अग्नि को पवित्र माना जाता है और उस धधक में कई ऐसी चीज़ें भी होंगी जिनको मैंने कभी बहुत पवित्र माना था.


ऐसा नहीं है की मैंने Shelley को पढ़ते पढ़ते अपने विचारो को उसके बताये छायावादी  सांचे पे ढाल लिया है. ऐसा भी नहीं है की मैं क्रोध में विनाशकारी चिंगारी को हवा देने का काम कर रहा हूँ. मैं चाहता तो हर उस चीज़ को जिसे मैं ख़त्म कर देना चाहता हूँ - उसके चीथड़े उड़ा सकता था - पर मैं वैसा नहीं करना चाहता. जला देना चाहता हूँ क्यूंकि अग्नि को पवित्र माना जाता है और उस धधक में कई ऐसी चीज़ें भी होंगी जिनको मैंने कभी बहुत पवित्र माना था.


आग में उर्जा होती है . उर्जा से नवनिर्माण भी होता है. और मेरा हमेशा से मानना रहा है की नवनिर्माण के लिए नष्ट हो जाना ज़रूरी होता है. जैसे की एक बीज - पहले अपना आवरण खोता है, फिर ज़मींदोज़ होता है, मिटटी में दबा दिया जाता है पर अंततः अंकुरित हो जाता है. हलकी ही फुनगी निकल आती है और कालांतर में एक वृक्ष बन जाता है. ऐसा वृक्ष जिसकी जडें मिटटी को धर पकडती हैं. वही मिटटी जिसमे कभी वो जमींदोज हुआ था.


जला देना चाहता हूँ क्यूंकि अग्नि को पवित्र माना जाता है और उस धधक में कई ऐसी चीज़ें भी होंगी जिनको मैंने कभी बहुत पवित्र माना था.

दृष्टिकोण या परिपेक्ष हमेशा वस्तुनिष्ट नहीं होता. मेरे सोचने के तरीके आपसे अलग हो सकता है और आपका मुझसे. और यकीं मानें ना इससे मुझे कोई फरक पड़ता है ना आपको पड़ना चाहिए. हम सब अपने अपने प्रश्नों के उत्तर ढूँढ रहे है. उत्तर.

"The answer my friend is blowin' in the wind... 
The answer is blowin' in the wind."