मूर्खता के भी अपने फायदे हैं . भद्र लोगों को ही संभल कर चलना पड़ता है क्यूंकि निराधार तर्कों में अक्सर विजय मूर्ख की ही होती है . कहीं पढ़ा था “हमारे लोकतंत्र का सबसे बड़ा विद्रूप यह है की चार गधे मिलकर एक विद्वान् को चुप करा सकते हैं क्यूंकि बहुमत होता है उनका” . इस तर्क को अगर थोडा विस्तृत परिपेक्ष में देखें तो संभवतः जीवन में हर दिन घटित होने वालो क्षणों में भी मूर्ख ही सदैव विजयी हो जाते हैं .
ऐसे में व्यक्ति क्या करे? वैकल्पिक रूप से मूर्खों के मुंह ना लगे ? यद्यपि इसके की उसके “मूर्खों – से- मुंह –ना – लगने“ के प्रयास को “घमंड” का प्रतिमान समझ लिया जायेगा? शायद हाँ ! क्योंकि इसी में भला है . भीड़ मूर्खों की ही रही है . ऐतिहासिक काल से. संख्या ज्यादा है . स्वर ऊँचा है . भले ही निरर्थक है . पर खुद पर भरोसा विद्वानों से भी ज्यादा . मूर्ख हैं – शायद रह भी जायें जीवनपर्यंत. कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलती .
एक विकल्प यह हो सकता है की मूर्खों के अधिकार छीन लिए जायें . उनको बोलने का हक़ भी ना हो ऐसा कानून बना दिया जाये . पर विद्वान शायद ये भी ना कर पाएं ... क्योंकि उनकी विद्वता उनको एकाधिकार की अधिवक्ता बना देती है . और एक अहम् फैसला यह भी होगा की “कौन मूर्ख है? “ इसका फैसला कौन करे? माना की मूढ़ गलत हैं पर यह भी तो ज़रूरी नहीं की ज्ञानी सदैव सही ही हों .
कभी कभी लगता है की विद्वता कितनी बेबस हो जाती है . लचर . लाचार . लालायित . “सत्य विचलित हो सकता है , पराजित नहीं “ जैसे वाक्यों का अर्थ गाम्भीर्य में समय नष्ट कर देने वाली . आशावान . अधूरी .
- मिश्राजी उर्फ़ ऑगस्टस
ऐसे में व्यक्ति क्या करे? वैकल्पिक रूप से मूर्खों के मुंह ना लगे ? यद्यपि इसके की उसके “मूर्खों – से- मुंह –ना – लगने“ के प्रयास को “घमंड” का प्रतिमान समझ लिया जायेगा? शायद हाँ ! क्योंकि इसी में भला है . भीड़ मूर्खों की ही रही है . ऐतिहासिक काल से. संख्या ज्यादा है . स्वर ऊँचा है . भले ही निरर्थक है . पर खुद पर भरोसा विद्वानों से भी ज्यादा . मूर्ख हैं – शायद रह भी जायें जीवनपर्यंत. कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलती .
एक विकल्प यह हो सकता है की मूर्खों के अधिकार छीन लिए जायें . उनको बोलने का हक़ भी ना हो ऐसा कानून बना दिया जाये . पर विद्वान शायद ये भी ना कर पाएं ... क्योंकि उनकी विद्वता उनको एकाधिकार की अधिवक्ता बना देती है . और एक अहम् फैसला यह भी होगा की “कौन मूर्ख है? “ इसका फैसला कौन करे? माना की मूढ़ गलत हैं पर यह भी तो ज़रूरी नहीं की ज्ञानी सदैव सही ही हों .
कभी कभी लगता है की विद्वता कितनी बेबस हो जाती है . लचर . लाचार . लालायित . “सत्य विचलित हो सकता है , पराजित नहीं “ जैसे वाक्यों का अर्थ गाम्भीर्य में समय नष्ट कर देने वाली . आशावान . अधूरी .
- मिश्राजी उर्फ़ ऑगस्टस